एक बार नानक जी ने घोड़े के व्यापार से मिले पैसों को साधु सेवा में लगा दिया। जब उनके पिता ने इस बारे में पूछा तो नानक जी ने जवाब दिया कि यह सच्चा व्यापार है। बाद में पिता ने नानक जी को उनके बहनोई जयराम के पास सुल्तानपुर भेज दिया।
Guru Nanak Jayanti 2022: आज सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव का जन्मोत्सव है। गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी। एक बालक जिसने अपना जीवन समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में लगा दिया। उन्होंने पारिवारिक जीवन और सुख त्याग कर लोगों की भलाई के लिए कार्य किया। कई लंबी यात्राएं की। गुरु नानक देव की जयंती को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। गुरु नानक देव जी के जन्मोत्सव के अवसर पर जानिए उनके जीवन से जुड़ी अहम बातें। ऐसे नानक देव जी एक संत और सिखों के पहले गुरु बन गए।
कार्तिक पूर्णिमा के दिन रावी नदी के किनारे स्थित तलवंडी नामक गाँव में एक क्षत्रिय कुल में जन्में नानक का विवाह बटाला की रहने वाली एक लड़की सुलखनी से हुआ। उनकी पत्नी सुलखनी के पिता का नाम मूला था। 28 वर्ष की आयु में नानक जी का पुत्र हुआ, जिसका नाम श्रीचन्द रखा गया। वहीं 31 वर्ष की आयु में नानक जी के दूसरे बेटे लक्ष्मीदास अथवा लक्ष्मीचंद पैदा हुए। शुरुआत में गुरु नानक के पिता उन्हें कृषि व्यापार में शामिल करना चाहते थे लेकिन उनके सारे प्रयास असफल रहे।
एक बार नानक जी ने घोड़े के व्यापार से मिले पैसों को साधु सेवा में लगा दिया। जब उनके पिता ने इस बारे में पूछा तो नानक जी ने जवाब दिया कि यह सच्चा व्यापार है। बाद में पिता ने नानक जी को उनके बहनोई जयराम के पास सुल्तानपुर भेज दिया।
बहनोई के प्रयासों से नानक जी को सुल्तानपुर के गवर्नर दौलत खां के यहां काम पर रख लिया गया। नानक जी बहुत ईमानदारी से काम करते थे। इस कारण जनता के साथ शासक दौलत खां भी नानक से बेहद खुश रहते।
हालांकि नानक में जनसेवा की भावना हमेशा रही। वह जो भी आय अर्जित करते उसका एक बड़ा हिस्सा गरीबों और साधुओं को दान कर देते। कभी कभी तो पूरी रात परमात्मा के भजन में लीन रहते। बाद में मरदाना से उनकी मुलाकात हुई, जो गुरु नानक के सेवक बन गए और आखिरी समय तक उनके साथ रहे।
रोजाना सुबह गुरु नानक देव जी बई नदी में स्नान के लिए जाया करते थे। कहा जाता है कि एक रोज जब स्नान के बाद वह जंगल में गए तो एकाएक वन में अंतर्धान हो गए। मान्यता है कि वहां उनका परमात्मा से साक्षात्कार हुआ। इसके बाद उनके जीवन में बदलाव आया। अपने परिवार की जिम्मेदारी ससुर मूला को सौंपकर गुरु नानक देव धर्म के प्रचार के मार्ग पर चल दिए और एक संत बन गए।